2.4.07

खामोशी

तेरी यादों से मेहकी मेरी तनहाई है...
तेरी हसी से उजली मेरी परछाई है...
दिल के किसी कोने में छिपी तुम्हारी आँखें है..
उन्ही आँखो में छिपी कुछ अनकाही बतें है..
सवाल अब तुम्हारे राज बन गए है..
तुम्हारी खामोशी के हम अब आदी हो गए है...

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