गलियों में उनके हम जो गये,
जहा लगा वोह अलग ही देश का,
दिखने में थे हमी जैसे कोई,
फरक था तो सिर्फ नजाकत का॥
जहा लगा वोह अलग ही देश का,
दिखने में थे हमी जैसे कोई,
फरक था तो सिर्फ नजाकत का॥
मिट्टी उनके आंगन की थी जो वोह
आंगन था हमारा उसी रंग,
फरक था उस खुशबू में,
लेहजा अलग, पर जीने का ढंग था एक सा॥
लेहजा अलग, पर जीने का ढंग था एक सा॥
हम एक ही रंग के होकर भी,
कुछ अलग सा मेहसूस हो रह था,
राहों से जब हम वोह गुज़ारे,
जहा एक न्यारा नज़र आ रह था॥
जहा एक न्यारा नज़र आ रह था॥
1 comment:
hi harshal......
Post a Comment