जिन्दगी के चौराहे पर नही कोई निशान..
किस राह पर चल हम छुएंगे कोई मक़ाम..
तेढी मेढी राहोंपे चलना नही है आसान...
भूल भुल्ल्या में अटक कर रेह गया है इन्सान..
हर मोडपे नई दिशा में मूड जाते है..
आसमन और ज़मीन के बीच कही अटक जाते है..
गर्दिश में कोई दर्शक मिलभी जाते है ..
तो हम अपने मज़ील पे कभी पहुच जाते है..
किस राह पर चल हम छुएंगे कोई मक़ाम..
तेढी मेढी राहोंपे चलना नही है आसान...
भूल भुल्ल्या में अटक कर रेह गया है इन्सान..
हर मोडपे नई दिशा में मूड जाते है..
आसमन और ज़मीन के बीच कही अटक जाते है..
गर्दिश में कोई दर्शक मिलभी जाते है ..
तो हम अपने मज़ील पे कभी पहुच जाते है..
No comments:
Post a Comment