6.8.07

शब्दों की दुकान

लोग और उनके शब्दों की दुकान,
कोडियों में बिकती है बदलती जुबान,
झूट से है वाकिफ सच से अंजान,
शातिर है ये बनते है नादान
काम के वक्त होते है, मेरी जान,
कम होते ही कोन है ये इन्सान,
बे मतलब नही होते कोई मेहेर्बान,
गली गली बिक रहे है सस्ते में इमान॥

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