29.8.07

जानू ना जानू

उलझे जवाबो की सुल्जी पहेली
मुस्कुराहट में छुपी नम सहेली
अधूरी बतों की बतें वोह करती
चुप चुप के हमसे वोह कुछ कहती
दिल में है रेहती सस्सों में है बसती
फिर भी आँखें हमेशा उसी है धून्डती

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