21.6.07

कुछ अधूरी तमन्नाएँ

तमन्नाएँ थी कुछ अधूरी सी॥
पुरानी केचुली सी कुछ छूट गयी॥
मायूसी कि धुल तले जमी थी कोई॥
नयी धूप के नए रंगो सी,
नवजात तितलियों की भाँति उड चली॥

9.6.07

गलियों में उनके

गलियों में उनके हम जो गये,
जहा लगा वोह अलग ही देश का,
दिखने में थे हमी जैसे कोई,
फरक था तो सिर्फ नजाकत का॥

मिट्टी उनके आंगन की थी जो वोह
आंगन था हमारा उसी रंग,
फरक था उस खुशबू में,
लेहजा अलग, पर जीने का ढंग था एक सा॥

हम एक ही रंग के होकर भी,
कुछ अलग सा मेहसूस हो रह था,
राहों से जब हम वोह गुज़ारे,
जहा एक न्यारा नज़र आ रह था

1.6.07

आज के ताजा समाचार

सुनिये आज के ताजा समाचार
एश ने पेहनाया अभिषेक को हार
अम्बानी कि तेलपे चले टाटा की कार
तीन साल हो गई फिर भी जमी है सरकार
महंगाई में महंगा भारत का कारोबार
थंडी है हालत सबकी, गरम है बाजार
आतंकवादियो का हर तरफ है हाहाकार
बंगला छावो के सामने फिकी भारात के शेरो की ललकार
कीटनाशक नही, इसलिये आमिरने ली ठण्डी डकार
गली गली सरे आम हो रहे है बलात्कार
अब तो भगवन बचाए दिखाए कोई चमत्कार