29.8.07

जानू ना जानू

उलझे जवाबो की सुल्जी पहेली
मुस्कुराहट में छुपी नम सहेली
अधूरी बतों की बतें वोह करती
चुप चुप के हमसे वोह कुछ कहती
दिल में है रेहती सस्सों में है बसती
फिर भी आँखें हमेशा उसी है धून्डती

6.8.07

शब्दों की दुकान

लोग और उनके शब्दों की दुकान,
कोडियों में बिकती है बदलती जुबान,
झूट से है वाकिफ सच से अंजान,
शातिर है ये बनते है नादान
काम के वक्त होते है, मेरी जान,
कम होते ही कोन है ये इन्सान,
बे मतलब नही होते कोई मेहेर्बान,
गली गली बिक रहे है सस्ते में इमान॥

पेड पे चढे हम

पेड पे चढे हम आम तोडने,
पूरी की पूरी टेहनी टूट गयी॥
टूटनी थी हमारी हड्डीया,
पर गम्पू की कोहनी टूट गयी॥
जैसे तैसे जा रहे थे हस्पताल,
पैये की तो हवा छूट गयी॥
लग गया पीछे हमारे मोती,
भागते भागते सास फूल गयी॥
गिरते संभलते पहुचे हस्पताल
आखों में पुरी, धुल गयी॥
डॉक्टर ने की गम्पू की मरम्मत,
गले से उसकी हतेली झूल गयी॥