16.7.06

उफ ये दर्द

नीले गगन में कही जिन्दगी छूट गयी
कोई कागज़ की कश्ती हमारी डूब गयी
मजधार मे हमे वोह कही छोड गयी
खता ना थी हमारी, फिर भी वोह हमसे रूठ गयी॥

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अंधेरों में रोशनी से डर जाते है
अपनी ही पर्छायीं से छीप जाते है
धडकनो पे अपनी हम शक करते है
अपने आप से ही हम अब रूठ जाते है

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