2.4.07

LOCAL TRAIN

लोकल ट्रेन की भी अजीब है बात..
यहा हड्डी पस्लिया हो जाती है एक साथ॥
लम्हों में ये बदलती है हजार..
इसिपे तो टिके है ढेर सारे संसार॥
मिलाती है ये अनगिनत राहों को..
छोड जाती है पीछे सूरज और सितारों को॥
लाखो दिलो की धड़कन है ये..
चलती और मुम्बई को चलती है ये॥

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